भूतपूर्व सैनिकों और अधिकारियों के लिए सरकार की तरफ से 2 बड़े फैसले
2. डिसेबिलिटी पेंशन लगने वाले टैक्स को लेकर बड़ी खबर
News Desk : दिल्ली हाई कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि स्वतंत्रता सेनानी सम्मान योजना के तहत पेंशन केवल स्वतंत्रता सेनानियों, उनकी विधवाओं या अविवाहित बेटियों के लिए है। कोर्ट ने एक स्वतंत्रता सेनानी की विधवा बेटी की इस योजना का लाभ देने की मांग ठुकराते हुए यह व्यवस्था दी।
जस्टिस विभु बाखरू को केंद्र ने जानकारी दी कि यहयोजना स्वतंत्रता सेनानी की विवाहित बेटी के लिए उपलब्ध नहीं है। जस्टिस बाखरू ने कहा, योजना से साफ है कि केवल एक व्यक्ति पेंशन का हकदार होगा। इसे ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता एसएसएस योजना के तहत पेंशन की हकदार नहीं है और मांगी गई राहत मंजूर नहीं की जा सकती।
हाई कोर्ट संतोष गुलिया की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें इस आधार पर पेंशन की मांग की गई कि वह स्वतंत्रता सेनानी दिवंगत श्रीलाल चंद की विधवा बेटी है। याचिकाकर्ता के पिता को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में मान्यता दी गई थी और उन्हें योजना के तहत लाभ दिया गया था।
2004 में श्रीलाल चंद का निधन हो गया था और पेंशन संतोष की मां को दी गई, जिनका पिछले साल निधन हो गया। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि अब वही पेंशन उन्हें दी जानी चाहिए।
नई दिल्ली : शारीरिक तौर पर अक्षम सैनिकों (विकलांग) के पेंशन पर टैक्स के सरकार के फैसले का जमकर विरोध हो रहा है। 1971 युद्ध में शारीरिक क्षति झेलनेवाले सैनिक सरकार के इस फैसले का जमकर विरोध कर रहे हैं। 1971 युद्ध में अपना एक पैर खोनेवाले सैनिक ने पेंशन में कटौती के लिए उनके नाम का तर्क देने के फैसले पर भी नाराजगी जाहिर की।
इस वक्त शारीरिक रूप से अक्षम सैनिकों के लिए 2 तरह के विशेष पेंशन की सुविधा है। एक पेंशन वह है जिसे जनरल कारडोजो जैसे सैनिक पाते हैं और एक अन्य सामान्य विकलांगता पेंशन है। आम तौर पर विकलांगता पेंशन सामान्य से 20 से 50% तक अधिक होता है। बता दें कि हाल ही में वित्त मंत्रालय ने सभी प्रकार के पेंशन को टैक्स के दायरे में लाने का ऐलान किया है। इसके तहत समय पूर्व रिटायरमेंट और कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर पेंशन को टैक्स के दायरे में लाने का प्रस्ताव है।
बता दें कि सरकार के इस फैसले का विरोध हो रहा है। आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत को भी पेंशन को टैक्स के दायरे में लाने के इसे फैसले पर नाराजगी झेलनी पड़ रही है। आर्मी मुख्यालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि सेना बहुत बड़ी संख्या में शारीरिक अक्षमता और बीमार सैनिकों के बोझ को वहन करने में सक्षम नहीं है। हालांकि, सरकार और आर्मी मुख्यालय के इस बयान का सैनिकों ने स्वागत नहीं किया।
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