New pension policy for defence | सेना में नई पेंशन नीति 2020 | New Defence Pension Policy 2020 - Government Staff

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New pension policy for defence | सेना में नई पेंशन नीति 2020 | New Defence Pension Policy 2020

नयी पेंशन नीति लागू होने पर सैन्य सेवा शर्तों में बदलाव की जरूरत, अन्यथा सैनिकों के मनोबल टूटेगा 


मार्च में रक्षा बजट के व्यय प्रस्तावों को संसदीय पैनल के सामने प्रस्तुत करते हुए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल विपिन रावत ने रक्षा बजट में बचत के कुछ सुझाव रखे थे, जिसका मुख्य उद्देश्य रक्षाकर्मियों की पेंशन पर होने वाले खर्च को कम कर इस धन को रक्षा तैयारियों के लिए उपलब्ध करवाना है। इस समय पेंशन पर ही रक्षा बजट का 28 फीसदी हिस्सा खर्च हो रहा है। उन्होंने मुख्य रूप से सैन्य कर्मियों की सेवा शर्तों में बदलाव एवं कुछ ऐसे रक्षा उपक्रमों को निजी क्षेत्र को देने की योजना बनाई है, जो बाजार के मुकाबले महंगे साबित हो रहे हैं। 

सैन्यकर्मियों की सेवा शर्तों में बदलाव के प्रभावों की चर्चा आजकल सोशल मीडिया पर जोर-शोर से चल रही है। यदि इनका निराकरण समय रहते नहीं किया गया, तो सेवारत सैनिकों एवं अधिकारियों के मनोबल पर प्रभाव पड़ सकता है। इन बदलावों में प्रमुख हैं, अधिकारियों की भर्ती के लिए शॉर्ट सर्विस कमिशन को बढ़ावा देना, सेना के तीनों अंगों में अधिकारियों की पूरी पेंशन पाने के लिए सेवा अवधि में बढ़ोतरी तथा 20 वर्ष की सेवा के बाद सेवानिवृत्ति के लिए पेंशन का 50 प्रतिशत कम करना।

इसके अतिरिक्त सेना के लड़ाकू अंगों जैसे इंफेंट्री, आर्टिलरी तथा सशस्त्र बल के सैनिक, जो 18 से 20 वर्ष की सेवा के बाद सेवानिवृत्त हो जाते हैं, उन्हें आर्मी सर्विस, आर्डिनेंस जैसी कोरों में स्थानांतरित करके उनकी सेवा अवधि को बढ़ाना भी शामिल है। साथ ही महंगे साबित होने वाले उपक्रमों को बंद करने का भी प्रस्ताव शामिल है। सेना में शॉर्ट सर्विस कमिशन द्वारा ज्यादा अधिकारियों की भर्ती करके दस वर्ष की सेवा अवधि के आखिरी एक-दो वर्ष में इनकी शैक्षिक तथा व्यावसायिक योग्यता को सिविल में रोजगार के अनुसार बनाकर इन्हें सेवानिवृत्त करने का प्रस्ताव भी है। इस प्रकार सेना को हर समय युवा अधिकारी मिलेंगे, तथा देश को अनुशासित, प्रशिक्षित तथा विकसित कर्मी मिलेंगे। 

इसके अतिरिक्त एक अन्य सुझाव में 20 वर्ष की सेवा के बाद सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारियों की पेंशन का 50 फीसदी कम करने का भी प्रस्ताव है। इन प्रस्तावों में विवाद केवल अधिकारियों की पूरी पेंशन पाने की आयु सीमा को 54 वर्ष से बढ़ाकर 58 वर्ष करने पर है। इस समय सेना के तीनों अंगों में कर्नल रैंक तक के अधिकारी 54 वर्ष तथा ब्रिगेडियर 56 वर्ष की आयु में पूरी पेंशन के साथ सेवानिवृत्त हो जाते हैं। परंतु प्रस्ताव के अनुसार, यदि कोई अधिकारी 50-54 वर्ष के बीच सेवानिवृत्त होना चाहेगा, तो उसे पेंशन का 60 फीसदी तथा 54-58 वर्ष के बीच 70 फीसदी हिस्सा ही प्राप्त होगा है। इसलिए अब हर अधिकारी को 58 वर्ष की आयु तक सेवा करनी होगी। परंतु यहां पर यह विचारणीय है कि सेना में पदोन्नति का ढांचा पिरामिड की तरह है, क्योंकि सैनिक कमांड के अनुसार यही उपयुक्त तथा प्रभावशाली होता है। इसलिए सेना में 90 फीसदी अधिकारी कर्नल तथा उसके नीचे स्तर से सेवानिवृत्त होते हैं। सेना में कर्नल रैंक के बाद प्रमोशन के अवसर कम हैं, इसलिए अधिकारी को पूरी तरह से प्रमोशन के क्रम से बाहर कर दिया जाता है। इस प्रकार की स्थिति में कुछ अधिकारियों की मनोस्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 

इसलिए ऐसे अधिकारियों को 54 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त करके माहौल ठीक रखने की कोशिश की जाती है। इस प्रकार 54 वर्ष की आयु में प्रमोशन से वंचित अधिकारियों को सेवानिवृत्त करना सेना की कार्यकुशलता तथा मनोबल बनाए रखने के लिए उतना ही जरूरी है, जितना हथियार तथा गोलाबारूद। नौकरशाही में तो प्रमोशन से वंचित रहने वाले अधिकारियों के लिए प्रमोशन के बगैर भी अपने बैच के प्रमोशन पाए अधिकारी के बराबर वेतन पाने का प्रावधान है। परंतु ऐसा प्रावधान सेना में नहीं है। तब किस प्रकार और ज्यादा संख्या में प्रमोशन से वंचित अधिकारियों को सेना में 54 वर्ष की जगह 58 वर्ष तक संभाला जाएगा? इन प्रस्तावों को लागू करने से पहले इस पहलू पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि यह सेना के मनोबल को बनाए रखने से जुड़ा है। 


(लेखक भारतीय सेना के सेवानिवृत्त कर्नल हैं)

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